Saturday, October 13, 2018


१५ अगस्त व रक्षाबंधन की युगल पावन बेला पर सभी देशवासियों को हमारी तरफ से बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं

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              PRANSHU VERMA                    



                       

       जीवन सीमित है और विज्ञान और विवेक का मिश्रित प्रयोग इसे मानवता के कल्याण की ओर अग्रसर करने के लिए हेतु प्रतिबद्ध है । समस्त प्राणवान प्राणी प्रकृति व विज्ञान से सबद्ध किसी भी गतिविधी हेतु अधिक या न्युन रूप से उत्तरदायी है । प्रकृति व विज्ञान को अलग-अलग समझना अधिक तर्कसंगत प्रतीत नही होता क्योकी प्रकृति की प्रत्येक हलचल विज्ञान से परिपूर्ण है । और विज्ञान का कार्य अथवा प्रयोगस्थल प्रकृति ही है ।यूँ तो प्रकृति का कम या अधिक उपयोग मनुष्य व जन्तु सभी करते है किन्तु प्रकृति के प्रति उत्तरदायित्व का अधिकतम भाग मनुष्य के ही हिस्से है जिसका प्रमुख कारण है । उसकी उच्च स्तरीय व असीमित उपभोग की प्रवृति । मूक जीव-जन्तु मात्र वही पाते है जो प्रकृति उन्हे स्वंय दे देती है । किन्तु मनुष्य उतने से ही संतुष्ट कहा होता है, और हो भी क्यो ? उसके पास विज्ञान जैसा इच्छापुर्ति यंत्र जो है ।मनुष्य को वानर से आधुनिक मानव बनाने मे उसकी आदि क्रीड़ास्थली प्रकृति से अधिक विज्ञान सहायक रहा है । मानव शिकार करता था । आग जलाना,पहिये बनाना उसे विज्ञान ने सिखाया । सिर्फ इतना ही नही,बैलगाड़ी से विमान तक का सफर उसने विज्ञान की बाँह थामकर तय किया है । इतने पर भी यदि वह विज्ञान के समुँख्ख प्रकृति को भुल जाता है तो इसमे आश्चर्य किस बात का । किन्तु मानव अपनी करोड़ो वर्षो की विकास यात्रा की सबसे बड़ी भुल यही करता है ।जीवन को आसान बनाने मे विज्ञान की सबसे बड़ी भुमिका है । ऐसा समझकर वह विज्ञान की आवश्यकताओ को पुरा करने हेतु प्रकृति को परे ढ़केल देने मे भी संकोच नही करता । बगैर यह समझे की विज्ञान उस प्रकृति पर उतना ही निर्भर है जितना की वह खुद । विज्ञान की उपयोगिता उसके प्रयोग के अधीन है । प्रकृति से दुर जा चुके मानव के लिए विज्ञान एक दुधारी तलवार से अधिक कुछ नही है । मानव की इच्छाये उसे बहुत समय तक सकारात्मक दिशाओं मे मोड़े नही रख सकती । मानव विज्ञान का सही उपयोग कर पाने मे सक्षम तभी हो सकता है जब वह प्रकृति का सही उपयोग करना सीख जाता है । मानव को प्रकृति के साथ जोड़े रखकर उसे समय के साथ विकास की सही व यथार्थ दिशा मे लेकर जा सकने मे विज्ञान के प्रयोग अत्यंत सहायक है । जैसे की यदि एक व्यक्ति को विज्ञान के लाभ-हानि की पूर्ण व तर्कसंगत जानकारी है तो विज्ञान के बेहतर उपयोग की संभावना बढ़ जाती है । इसी के साथ यदि वह प्रकृति के मानवीय मूल्यो से भी युक्त है तो उसके द्वारा किये गये सभी कार्य मानव हित मे ही होगे । ऐसा विश्वास भी प्रबल होता है । प्रकृति व विज्ञान के बीच मनुष्य के मध्यस्थ होते हुए भी तीनो के मध्य परस्पर इतनी निकटता है की उनमे विभेद कर सकना कठिन है ।ऐसे मे तीनो का अलग-अलग अस्तिव समझना अथवा तीनो के उपयोगिता को भिन्न दृष्टिकोण से देखना नासमझी है । विज्ञान व प्रकृति के हितो व अहितो को समान महत्ता देना ही मानव कल्याण मे है । यह मात्र हमारा दुर्भाग्य ही है की हम बमो के प्रति इतने सावधान रहते है,युद्ध होने पर सदियो तक रोया करते है । किन्तु जंगलो व अन्य प्राकृतिक संपदाओ के हनन को प्रगति का नाम देकर चुप्पी साधे रहते है । हमको उससे पहले सचेत हो जाना होगा जब यह चुप्पी सुनी मनुष्यता का सन्नाटा बन इस हरी-भरी मुस्कुराती धरती को अकेला छोड़ दे ।